Latest review from Satish Rastogi
न बहारों से कोई गिला, न शिकायत कर फिजाओं से,
ये राहें मुहब्बत है यहाँ, तूफां तो आते रहते हैं।
कड़ी धूप कभी सर्द हवाएँ, अजमाती राहगीरों को,
बे खौफ जला जो शमा पर, उसे ही परवाना कहते हैं।
चाहत जिनके दिल में, मुलाकात की समंदर से,
इक पल भी नहीं हैं रुकते, वो झरने सदा ही बहते हैं।
कभी देख उन वृक्षों को, सूखी डालें विरानापन,
बहारों के इन्तजार में, पतझड़ की मार जो सहते हैं।
तू होने देना न कभी, उत्साह कम अरमानों में,
रात अँधेरी में दीवानें, दिल के दीप जलाते हैं।
Satish Rastogi........